Surah Al Bakrah ayat 8 to 18 सूरह अल-बकरा आयत 8 से 18

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

सूरह अलबकरा आयत 8 से 18

तआरूफ 

सूरह अल-बकरा क़ुरान पाक की एक अहम सूरह है जो मुसलमानों के लिए हिदायत का ज़रिया है। इस ब्लॉग में हम सूरह अलबकरा आयत 8 से 18 Surah Al Bakrah ayat 8 to 18 का तफ्सीली जायज़ा लेंगे। ये आयत मुनाफिकों की असलियत और उनके दिखावे पर रौशनी डालती हैं। इस तफ्सीर में हम अरबी आयत के साथ तर्जुमा और उसका असर और हिदायत पर भी बात करेंगे।

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

सूरह अल-बकरा आयत 8-18

सूरह अल-बकराह 8

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 8

وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَقُولُ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَمَا هُم بِمُؤْمِنِينَ ٨

तर्जुमा: और कुछ लोग कहते हैं कि हम अल्लाह और पिछले दिन पर ईमान लाए, और वो ईमान वाले नहीं।

तफ्सीर

इस आयत में उन मुनाफिकों का ज़िक्र है जो जुबान से ईमान लाने का दावा करते हैं मगर उनका दिल कुफ्र से भरा होता है।

ये लोग सिर्फ दुनियावी फ़ायदे के लिए अपने आप को मुसलमान कहते हैं। अल्लाह तआला उनके दिखावे को बे-नकाब करता है और उनकी असली हकीकत सामने लाता है।

सूरह अल-बकराह 9

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 9

يُخَـٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَمَا يَخْدَعُونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ ٩

तर्जुमा : धोखा देना चाहते हैं अल्लाह और ईमान वालों को, और हकीकत में धोखा नहीं देते मगर अपनी जानों को, और उन्हें एहसास नहीं।

तफ्सीर

वे धोखा देना चाहते हैं अल्लाह और ईमान वालों को, मगर दरअसल वे अपने आप को ही धोखा देते हैं और उन्हें इसका एहसास नहीं होता।

मुनाफिक यह समझते हैं कि वे अपनी चालाक हरकतों के ज़रिए अल्लाह और मोमिनों को धोखा दे रहे हैं, मगर असल में वे अपने आपको ही बर्बाद कर रहे हैं।

अल्लाह उनके हर एक अमल से बाखबर है और वे अपनी चाल में कभी कामयाब नहीं हो सकते।

सूरह अल-बकराह 10

Surah Al Bakrah ayat 8 to 10

Surah Al Bakrah ayat 10

فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ فَزَادَهُمُ اللَّهُ مَرَضًا وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُوا يَكْذِبُونَ ١٠

तर्जुमा : उनके दिलों में बीमारी है तो अल्लाह ने उनकी बीमारी और बढ़ाई और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है बदला उनके झूठ का।

तफ्सीर

उनके दिलों में एक बीमारी है, और अल्लाह ने उनकी बीमारी को और बढ़ाया, और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है, जो वे झूठ बोलते हैं।

"दिल की बीमारी" से मुराद निफ़ाक़ है, जो इंसान के दिल में होता है और उसे हक़ को तस्लीम करने से रोकता है।

जब इंसान बार-बार झूठ बोलता है और अल्लाह के हुक्म से मुंह मोड़ता है, तो उसका दिल और ज़्यादा सख्त हो जाता है।

सूरह अल-बकराह 11

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 11

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا تُفْسِدُوا فِي الْأَرْضِ قَالُوا إِنَّمَا نَحْنُ مُصْلِحُونَ ١١

तर्जुमा : और जो उनसे कहा जाए ज़मीन में फसाद न करो तो कहते हैं हम तो संवारने वाले हैं।

तफ्सीर

और जब उनसे कहा जाता है, "ज़मीन पर फसाद मत करो," तो वे कहते हैं, "हम तो सिर्फ सुलह करने वाले हैं।"

मुनाफिक अपने बुरे कामों को अच्छा दिखाने की कोशिश करते हैं।

वे ज़ुल्म, फ़ितना और नफरत फैलाते हैं और इसे सुलह का नाम देते हैं। अल्लाह उनके असलियत को बे-नकाब कर देता है।

सूरह अल-बकराह 12

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18
Surah Al Bakrah ayat 11

أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ الْمُفْسِدُونَ وَلَكِنْ لَا يَشْعُرُونَ ١٢

तर्जुमा : सुनता है वही फसादी हैं मगर उन्हें शऊर नहीं।

तफ्सीर

सुन लो! ये लोग ही असल फसाद करने वाले हैं, लेकिन वे समझते नहीं।

ये आयत उनके दिखावे को एक्सपोज़ करती है जो हक़ की राह में रुकावट डालते हैं।

अल्लाह उनका हश्र उनके फसाद के मुताबिक करेगा।

सूरह अल-बकराह 13

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 13

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ آمِنُوا كَمَا آمَنَ النَّاسُ قَالُوا أَنُؤْمِنُ كَمَا آمَنَ السُّفَهَاءُ أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ السُّفَهَاءُ وَلَكِنْ لَا يَعْلَمُونَ ١٣

तर्जुमा : और जब उनसे कहा जाए ईमान लाओ जैसे और लोग ईमान लाए हैं तो कहते हैं क्या हम अहमकों की तरह ईमान ले आएं? सुनता है! वही अहमक हैं मगर जानते नहीं।

तफ्सीर

और जब उनसे कहा जाता है, "ईमान लाओ जैसे और लोग ईमान लाए," तो वे कहते हैं, "क्या हम उन जाहिल लोगों की तरह ईमान लाएं?" सुन लो! ये लोग ही असल में जाहिल हैं, लेकिन उन्हें मालूम नहीं।

ये आयत उन मुनाफिकों के तकब्बुर और बे-हिसी को बयान करती है।

वे मोमिनों को जाहिल समझते हैं जबकि असल में वे खुद गुमराह हैं।

सूरह अल-बकराह 14

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 14

وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْا إِلَى شَيَاطِينِهِمْ قَالُوا إِنَّا مَعَكُمْ إِنَّمَا نَحْنُ مُسْتَهْزِئُونَ ١٤

तर्जुमा : और जब ईमान वालों से मिलें तो कहें हम ईमान लाए, और जब अपने शैतानों के पास अकेले हों तो कहें हम तुम्हारे साथ हैं, हम तो यूं ही हंसी करते हैं।

तफ्सीर

और जब वे मोमिनों से मिलते हैं तो कहते हैं, "हम ईमान लाए," और जब अपने शैतानों के साथ तन्हा होते हैं, तो कहते हैं, "हम तुम्हारे साथ हैं, हम तो सिर्फ मज़ाक कर रहे थे।"

मुनाफिक दोनों तरफ से फ़ायदा उठाना चाहते हैं और अपनी असली शक्ल छुपाते हैं।

ये लोग न अल्लाह से डरते हैं न उसके अज़ाब का खौफ रखते हैं।

सूरह अल-बकराह 15

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 15

اللَّهُ يَسْتَهْزِئُ بِهِمْ وَيَمُدُّهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ ١٥

तर्जुमा : अल्लाह उनसे इस्तेहज़ा करता है (जैसा कि उसकी शान के लायक है) और उन्हें ढील देता है कि अपनी सिरकशी में भटकते ।

तफ्सीर

अल्लाह उनसे इस्तेहज़ा करता है (जैसा कि उसकी शान के लायक है) और उन्हें उनकी बगावत में छोड़ देता है कि वे भटकते रहें।

अल्लाह उनकी हंसी मजाक का उन्हें बदला देगा। अल्लाह तआला इस्तेहज़ा और तमाम ऐबों से पाक है, यहाँ जो अल्लाह तआला की तरफ इस्तेहज़ा की निसबत है, उससे मुराद मुनाफिकों के इस्तेहज़ा का बदला देना है। और बदले के समय अरबी (और उर्दू) में इस तरह का शब्द दोहराया जाता है, जैसे कहा जाए कि बुराई का बदला बुराई ही होती है, हालाँकि बुराई का बदला तो अद्ल और इंसाफ और आदमी का हक होता है

ये अल्लाह की मस्लिहत है कि वह उन्हें उनके हाल पर छोड़ देता है ताकि उनका दिखावा और ज़्यादा खुल के सामने आए।

मुनाफिक अपनी चालाकियों में कभी कामयाब नहीं होते।

सूरह अल-बकराह 16

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 16

أُولَئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَى فَمَا رَبِحَتْ تِجَارَتُهُمْ وَمَا كَانُوا مُهْتَدِينَ ١٦

तर्जुमा : यह वह लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही खरीदी तो उनका सौदा कुछ नफा ना लाया और वह सौदे की राह जानते ही ना थे।

तफ्सीर

ये वे लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही खरीद ली, उनकी तिजारत ने उन्हें कुछ फायदा न दिया और न वे हिदायत पा सके।

ये आयत मुनाफिकों के नफ़रत और ज़ाया शुदा जिंदगी को बयान करती है।

हिदायत को छोड़कर गुमराही अपनाना सबसे बड़ी नादानी है।

सूरह अल-बकराह 17

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 17

مَثَلُهُمْ كَمَثَلِ الَّذِي اسْتَوْقَدَ نَارًا فَلَمَّا أَضَاءَتْ مَا حَوْلَهُ ذَهَبَ اللَّهُ بِنُورِهِمْ وَتَرَكَهُمْ فِي ظُلُمَاتٍ لَا يُبْصِرُونَ ١٧

तर्जुमा : उनकी कहावत उसकी तरह है जिसने आग रोशन की तो जब इससे आस-पास सब जगमगा उठा, अल्लाह उनका नूर ले गया और उन्हें अंधेरों में छोड़ दिया कि कुछ नहीं सूझता।

तफ्सीर

उनकी मिसाल उस शख्स की तरह है जिसने आग जलाई, मगर जब उसकी रौशनी चिराग हुई, तो अल्लाह उनका नूर छीन लेता है और उन्हें अंधेरों में छोड़ देता है कि वे कुछ देख नहीं सकते।

ये आयत उनके दिखावे को बे-नकाब करती है।

मुनाफिक हक़ का इज़हार करते हैं मगर असल में गुमराही के अंधेरों में होते हैं।

सूरह अल-बकराह 18

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 18

صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَرْجِعُونَ ١٨

तर्जुमा : बहरे, गूंगे, अंधे तो वो फिर आने वाले नहीं।

तफ्सीर

वो बहरे, गूंगे और अंधे हैं, इस लिए वो कभी हिदायत की तरफ नहीं पलटेंगे।

ये आयत मुनाफिकों के दिल की सख्ती और उनके अमल की बेकारियत को बयान करती है।

अल्लाह का इनहजार कहते हैं और उनके लिए अज़ाब तैयार है।

हिदायत और इबरत

मुनाफिकत एक बड़ी बीमारी है जो इंसान को तबाही की तरफ ले जाती है।

हिदायत सिर्फ उन्हीं को मिलती है जो दिल से ईमान लाते हैं और अल्लाह से खौफ रखते हैं।

इंसानी जिंदगी का असल मकसद सिर्फ अल्लाह की रज़ामंदी हासिल करना है।

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

सूरह अल-बकरह (आयत 8-18) का मुख्तसर नतीजा:

इस हिस्से में अल्लाह तआला ने मुनाफिकों का ज़िक्र किया है जो ज़ुबान से ईमान का दावा करते हैं लेकिन उनके दिल कुफ्र से भरे हुए हैं। वे लोग अपनी चालाकी और फरेब से अल्लाह और मोमिनों को धोखा देने की कोशिश करते हैं, लेकिन असल में वे खुद को धोखा दे रहे होते हैं।

अल्लाह उनके दिलों की हकीकत को बेहतरीन तरीके से जानता है और उनकी फितरत में एक बीमारी है जो उनके निफाक़ को बढ़ाती है। ये लोग हक़ बात सुनकर इसका मज़ाक उड़ाते हैं और गुमराही को हिदायत पर तरजीह देते हैं।

मुनाफिकों की मिसाल उस शख्स की है जो अंधेरे में राह खो देता है या उसके आस-पास बिजली चमकती है जो थोड़ी रोशनी देती है मगर फिर अंधेरा उन्हें घेर लेता है। ये लोग सिर्फ अपने फायदे के लिए ईमान का लिबादा ओढ़ते हैं, लेकिन असल में वे गुमराह हैं और उनका अंजाम अज़ाब है।

मुनाफिक बहरे, गूंगे और अंधे हैं। वे हक़ को न सुनते हैं, न समझते हैं, और न ही उसे अपनाने की कोशिश करते हैं। इनकी गुमराही इतनी गंभीर है कि ये कभी भी सच्चे रास्ते पर लौटने वाले नहीं हैं।

ये आयतें हमें मुनाफिकत से बचने और हक़ को इखलास के साथ कबूल करने की तालीम देती हैं। अल्लाह के हुक्म और हिदायत पर चलने वालों के लिए रहमत और कामयाबी है।

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

Surah Al Bakrah ayat 8 to 18

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