Surah Al-Baqarah Ki Tafseer ayat 1 to 7
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सूरह अल-बकरा आयत 1-7 तफ़सीर और तर्जुमा
Surah Al-Baqarah Ki Tafseer aur tarjuma ayat 1 to 7
परिचय
सूरह अल-बकरा कुरान-ए-करीम की सबसे लंबी सूरह है और इसकी शुरुआती आयतें कुरान के उसूली पैगामात को समझने के लिए इंतिहाई अहम हैं। इस ब्लॉग में हम सूरह अल-बकरा आयत 1-7 तफ़सीर और हिकमत Surah Al-Baqarah Ki Tafseer ayat 1 to 7 और सूरह अल-बकरा की पहली 7 आयतों का तर्जुमा का तफसील से मुताला करेंगे।
सूरह अल-बकरा, क़ुरआन की सब से लंबी सूरह है, जो 286 आयात पर मबनी है। ये मक्का की तरह मदीना में नाज़िल हुई थी। सूरह की शुरूआत अलिफ-लाम-मीम (الٓمّ) से होती है, जो कि एक खास अराबी मौजिज़ा है। ये अक्षर क़ुरआन की कई सूरहों में इस्तेमाल होते हैं। इन अक्षरों का असल मकसद इंसान को ये बताना है कि ये किताब सिर्फ अल्लाह के इल्म और हिकमत से है, जिसे समझना सिर्फ उसी की मदद से मुमकिन है।
आयत 1-7 का तर्जुमा
आयत 1
०الم
(अलिफ़ लाम मीम)
तर्जुमा: अलिफ़ लाम मीम (इसका मअनी सिर्फ़ अल्लाह और उसका रसूल जानते हैं)।
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Surah Al-Baqarah Ki Tafseer ayat 1 |
अलिफ-लाम-मीम (الٓمّ) का मआना यह है कि ये मुख्तसर अक्षर क़ुरआन के पहेलियों में से हैं, और इंसान उन्हें सिर्फ अल्लाह की मदद से समझ सकता है। आला हज़रत (रहमतुल्लाह अलैह) के मुताबिक, ये अक्षर इस लिए इस्तेमाल किए गए हैं ताकि इंसान अपनी अक्ल और इल्म से परे, सिर्फ इलाही इल्म पर भरोसा करे। तफ़सीर सिरातुल जिनान के मुताबिक, अलिफ-लाम-मीम यह इस बात का इशारा है कि जो कुछ क़ुरआन में लिखा गया है, वह अल्लाह की तरफ से है और इंसान को अपनी समझदारी से ज़्यादा इलाही इल्म पर यकीन रखना चाहिए।
आयत 2
ذَٰلِكَ ٱلۡكِتَٰبُ لَا رَيۡبَۛ فِيهِۛ هُدٗى لِّلۡمُتَّقِينَ
तर्जुमा: यह वह किताब है जिसमें कोई शक नहीं, यह मुत्तक़ियों के लिए हिदायत है।
ज़ालिकल किताबु ला रायबा फीहि (ذَٰلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ فِيهِ) का मआना है कि यह किताब पूरी तरह से सच्ची है, और इसमें कोई शक नहीं। आला हज़रत के मुताबिक, क़ुरआन की हर एक आयत और हर लफ़्ज़ सच और हक़ है। ये आयत इस बात को वाज़ेह करती है कि जो लोग क़ुरआन पर शक करते हैं, वे अपने आप को ग़लत समझ रहे हैं। तफ़सीर सिरातुल जिनान के मुताबिक, क़ुरआन में जो भी लिखा गया है, वह अल्लाह की तरफ से है और इसमें किसी किस्म का शक नहीं हो सकता।
आयत 3
ٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡغَيۡبِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ
तर्जुमा: जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं और हमारे दिए हुए रिज़्क़ में से ख़र्च करते हैं।
अल्लज़ीना यूमिनूना बिल-ग़ैब (الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ) का मआना है कि जो लोग ग़ैब पर ईमान लाते हैं। ग़ैब का मतलब है वो चीज़ें जो हमारी आंख से नज़र नहीं आतीं, मगर वो सच हैं। आला हज़रत के मुताबिक, ग़ैब पर ईमान लाना एक ईमानी फर्ज़ है। यह आयत यह बताती है कि हमें अपने ईमान को उस चीज़ पर भी यकीन रखने की ज़रूरत है जो हम देख नहीं सकते, जैसे अल्लाह, फरिश्ते, जन्नत और जहन्नम।
ग़ैब का ईमान रखना सिर्फ एक इंसान की नफरत और नजूमी नज़रियात को दूर करता है, बल्कि इससे इंसान का रूहानी सफर भी आसान हो जाता है।
आयत 4
وَٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَ وَبِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ يُوقِنُونَ
तर्जुमा: और जो उस पर ईमान लाते हैं जो तुम पर नाज़िल किया गया और उस पर जो तुमसे पहले नाज़िल किया गया, और वह आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं।
वयूमिनूना बिमा उनज़िला इलैका (وَيُؤْمِنُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ) का मतलब है जो कुछ तुम्हारे ऊपर उतारा गया, उस पर ईमान लाना। क़ुरआन और हदीस के सारे पैगाम पर यकीन रखना ज़रूरी है। हमारी दीनी जिंदगी में जो कुछ भी अल्लाह ने अपने रसूल (ﷺ) के जरिए भेजा, उस पर ईमान लाना फर्ज़ है। इस आयत से हम यह समझते हैं कि क़ुरआन और हदीस की एहमियत कितनी ज़्यादा है, और इन दोनों को अपनी जिंदगी में अपनाकर हमें अपने ईमान को मज़बूत बनाना चाहिए।
इस बात को वाज़ेह किया गया है कि जो इंसान इस ईमान पर यकीन रखता है, उसका ईमान उससे ज़्यादा पक्का हो जाता है।
आयत 5
أُوْلَٰٓئِكَ عَلَىٰ هُدٗى مِّن رَّبِّهِمۡۖ وَأُوْلَٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ
तर्जुमा: यही लोग अपने रब की तरफ़ से हिदायत पर हैं और यही लोग फ़लाह पाने वाले हैं।
उलाइका अलाहुदन मिन-रब्बिहिम (أُو۟لَـٰٓئِكَ عَلَىٰ هُدًۭى مِّن رَّبِّهِمْ) का मतलब है कि ये लोग अपने रब की तरफ से सीधी राह पर हैं। यह आयत उन लोगों की तारीफ करती है जो अपनी जिंदगी क़ुरआन और हदीस की राह पर गुज़ार रहे होते हैं। ये वो लोग हैं जो अपने ईमान को पूरी तरह से सच्चाई पर रखते हैं और अल्लाह की तरफ से निकली हुई राह पर चलते हैं।
जो इंसान इस राह पर चल रहा होता है, उसे अल्लाह की रहमत और मदद मिलती है। ऐसे लोग अपनी जिंदगी के हर पहलू में सक्सेस और बरकत देखते हैं।
आयत 6
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡهِمۡ أَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ
तर्जुमा: जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके लिए बराबर है, तुम उन्हें डराओ या ना डराओ, वह ईमान नहीं लाएंगे।
इन्नलज़ीना कफ़रू (إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا۟) का मतलब है उन लोगों की हालत जो काफ़िर हैं। काफ़िर वो हैं जो अपने दिल से ईमान नहीं लाते और अल्लाह और उसके रसूल की बात से नफरत करते हैं। यह आयत उन लोगों को दर्ज करती है जो अपने दिल को अल्लाह के इल्म और हिदायत से बंद कर देते हैं, और उन्हें हक़ को समझने की कोई ज़रूरत नहीं होती।
आयत 7
خَتَمَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَعَلَىٰ سَمۡعِهِمۡۖ وَعَلَىٰٓ أَبۡصَٰرِهِمۡ غِشَٰوَةٞۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ
तर्जुमा: अल्लाह ने उनके दिलों और कानों पर मोहर लगा दी है, और उनकी आंखों पर पर्दा है, और उनके लिए बड़ा अज़ाब है।
ख़तमल्लाहु अलाकुलूबिहिम (خَتَمَ اللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ) का मतलब है कि अल्लाह ने उनके दिलों पर सील लगा दी। इसका मतलब है कि जब कोई इंसान अपने दिल को हक़ से बंद कर लेता है और सच्चाई को नहीं कबूल करता, तो अल्लाह उसके दिल पर सील लगा देता है। यह सील उस इंसान को हक़ को समझने से रोकती है।
जब इंसान अपने दिल को उस वक्त बंद कर लेता है जब वो सच्चाई को समझना चाहता है, तो अल्लाह उस इंसान को अपनी मदद से महरूम कर देता है।
आयत 1-7 का तख़्लीकी नुक्ता नज़र
1. अलिफ़ लाम मीम का मअनी:
यह हुरूफ़-ए-मुक़त्तआत हैं, जिनका हक़ीक़ी मअनी सिर्फ़ अल्लाह और उसका रसूल जानतता हैं। यह कुरान की अज़मत और इसकी इलाही फितरत की निशानी है।
2. किताब में शक नहीं:
इस आयत का मतलब है कि कुरान एक हिदायत की किताब है जो सिर्फ़ मुत्तक़ियों के लिए फायदेमंद है, यानी वह लोग जो अल्लाह से डरते हैं और उसकी रज़ा के तलबगार हैं।
3. ग़ैब पर ईमान:
ग़ैब पर ईमान का मतलब है वह चीज़ें जो इंसानी आंखें नहीं देख सकतीं, जैसे अल्लाह का वजूद, फरिश्ते, जन्नत, दोज़ख, और आख़िरत।
4. सलात और ज़कात:
नमाज़ और माल ख़र्च करना, दोनों अमल इंसानी नफ़्सियात और अख़लाक़ी तर्बियत का सबूत हैं। सलात से बंदगी और ज़कात से इंसानियत का इज़हार होता है।
5. ईमान बिल आख़िराह:
आख़िरत पर यक़ीन रखना इंसान को ज़िंदगी का असल मक़सद समझने और उस पर अमल करने की तरफ़ ले जाता है।
आयत 6-7 का मफ़हूम
काफ़िरों की हक़ तल्फ़ी:
अल्लाह तआला काफ़िरों की कुफ़्र पर मुहर लगाने का ज़िक्र करता है, जो उनकी अपनी ज़िद और हक़ को न मानने के सबब होता है।
दिल और कान पर मोहर लगाना:
इसका मतलब है कि कुफ़्र और गुमराही की वजह से उनकी समझने की सलाहियत ख़त्म हो गई है। उनका दिल हक़ को तस्लीम नहीं करता और उनकी आंखें हक़ को देख नहीं सकतीं।
इन आयात से इक्तिबास
- मुत्तक़ियों के लिए कुरान: मुत्तक़ियों का ज़िक्र इस लिए किया गया क्योंकि कुरान का फ़ायदा वही उठाते हैं जो दिल से इसकी हिदायत को मानते हैं।
- सलात और ज़कात: यह अमल इंसानियत और बंदगी का कामिल इज़हार हैं। सलात इंसान को अल्लाह के क़रीब करती है और ज़कात ग़रीबों के हक़ में इंसाफ़ को आम करती है।
कुरानिक मैसेज और आज की ज़िंदगी
- ईमान का मज़बूत रुख़: इंसानी ज़िंदगी में ईमान का मज़बूत होना ज़रूरी है ताकि हर मुश्किल का सामना किया जा सके।
- मुत्तक़ी बनना: कुरान मुत्तक़ी बनने की तरफ़ दावत देता है, यानी वह जो अल्लाह की रज़ा तलाश करें।
- आख़िरत का तज़क्कर: आख़िरत का यक़ीन इंसानी ज़िंदगी का मक़सद और अमल को समझने में मदद करता है।
निस्बत और तफ़सीर का ख़ुलासा:
सूरह अल-बकरा की आयत 1 से 7 हमारे इमान, अकीदा और अल्लाह की तरफ से आए हुए इल्म पर चलने की जरूरत को समझने की तालीम देती हैं। इन आयतों से हमें अपनी जिंदगी को अल्लाह की तरफ से दी हुई सही राह, जो कि बेहतरीन और कामयाब राह है, पर चलने की अहमियत को समझते हैं। यह राह न सिर्फ़ दुनिया में हमारे लिए खुशी और सुकून का जरिया है, बल्कि आख़िरत में भी हमें अल्लाह की रहमत और बरकत से नवाज़ा जाता है।
इन आयतों का एक ख़ास पैग़ाम है, जो हमारे जीने का तरीक़ा और हमारी ज़िंदगी के मक़सद को दुरुस्त करता है। अल्लाह की तरफ से जो इल्म हम तक पहुँचता है, वह हमेशा हमारे लिए एक सही, अच्छी और बेहतरीन रहनुमाई है। जब हम इस इल्म को अपनी ज़िंदगी में अपनाते हैं, तो हम सिर्फ़ दुनिया में नहीं, बल्कि आख़िरत में भी अपनी मंज़िलों तक पहुँच सकते हैं।
इससे यह भी समझ में आता है कि जब हम अपनी ज़िंदगी को अल्लाह की रहनुमाई पर चलने का इरादा करते हैं, तो हम अपने आप को हर तरह की गुमराही, मुश्किलात और मुसीबत से बचा लेते हैं। अल्लाह का इल्म हमारे लिए उस रास्ते को खोलता है जो सिर्फ़ हमारे लिए नहीं, बल्कि तमाम इंसानियत के लिए बेहतरीन है।
इस ब्लॉग को लिखने में हमने कोशिश और मेहनत की है हमने पूरी एहतियात की है कि कही पर भी कोई गलती न हो फिर भी अगर आपको कुछ भी, कही भी कुछ गलती नजर आए तो हमें कमेंट के जरिए जरूर बताए जिससे हम उस गलती में जल्द से जल्द सुधार कर सके |
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جزاك اللهُ خيرا
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