surah bakrah ayat 24 tarjuma aur tafseer in Hindi
सूरह बक़राह आयत 24 तर्जुमा और तफ़सीर हिन्दी में surah bakrah ayat 24 tarjuma aur tafseer in Hindi
सूरह अल-बकरा क़ुरान पाक की एक अहम सूरह है जो मुसलमानों के लिए हिदायत का ज़रिया है। इस ब्लॉग में हम सूरह बक़राह आयत 24 तर्जुमा और तफ़सीर हिन्दी में surah bakrah ayat 24 tarjuma aur tafseer in Hindi का तफ्सीली जायज़ा लेंगे। यह आयत पिछले बयान सूरह बक़राह आयत 23 तर्जुमा और तफ़सीर हिन्दी में का हिस्सा है, जिसमें अल्लाह तआला ने क़ुरआन के बारे में चुनौती दी थी कि यदि कोई इसे अल्लाह का कलाम नहीं मानता तो इसके जैसी एक ही सूरह बनाकर पेश करे। इस आयत में स्पष्ट किया गया है कि यह चुनौती इंसानों और जिन्नात के सामूहिक प्रयास के बावजूद असंभव है।इस तफ्सीर में हम अरबी आयत के साथ तर्जुमा और उसका असर और हिदायत पर भी बात करेंगे।
सूरह बकराह आयत 24 surah No.2 Ayat No.24
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surah bakrah ayat 24 tarjuma aur tafseer |
सूरह बकराह आयत 24
فَإِن لَّمْ تَفْعَلُوا۟ وَلَن تَفْعَلُوا۟ فَٱتَّقُوا۟ ٱلنَّارَ ٱلَّتِى وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ ۖ أُعِدَّتْ لِلْكَـٰفِرِينَ ٢٤
तर्जुमा : फिर अगर ना ला सको और हम फरमा देते हैं कि हरगिज़ ना ला सकोगे, तो डरो उस आग से जिसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं, तैयार रखी है काफिरों के लिए।
तफ़्सीर
وَ قُوْدُهَا النَّاسُ وَ الْحِجَارَةُ
इसका ईंधन आदमी और पत्थर हैं।
इस आयत में आदमी से काफिर और पत्थर से वह बुत मुराद हैं जिनकी कुफ़्फार इबादत करते हैं और उनकी मोहब्बत में क़ुरआन-ए-पाक और रसूल-ए-करीम ﷺ का इनकार करते हैं। पत्थरों का जहन्नुम में जाना उन पत्थरों की सज़ा नहीं, बल्कि उनकी इबादत करने वालों की सज़ा के लिए होगा, यानी उनको उन पत्थरों के साथ सज़ा दी जाएगी।
اُعِدَّتْ لِلْكٰفِرِیْنَ
वह काफ़िरों के लिए तैयार की गई है।
इससे मालूम हुआ कि दोज़ख़ पैदा हो चुकी है क्योंकि यहाँ माज़ी के अल्फ़ाज़ हैं, निज "काफ़िरों के लिए" फ़रमाने में यह भी इशारा है कि मोमिनीन अल्लाह तआला के फज़ल व करम से जहन्नुम में हमेशा दाख़िले से महफ़ूज़ रहेंगे क्योंकि जहन्नुम ब-तौर-ए-ख़ास काफ़िरों के लिए पैदा की गई है।
अल्लाह तआला यहाँ अपने कलाम के बे-मिसाल होने का बयान करता है। यह कुरआन किसी इंसानी काम का नतीजा नहीं, बल्कि अल्लाह तआला का मौजिजा है। जो लोग इसका इनकार करते हैं, उनके लिए जहन्नम का अज़ाब है।
अहम नुक़ात:
चैलेंज और ना-अहली:
क़ुरआन के इस चैलेंज का मकसद यह साबित करना है कि यह किताब सिर्फ अल्लाह का ही कलाम है।
इंसान और जिन्न अपनी तमाम अक्ल और हुनर के बावजूद इसकी मिसाल नहीं ला सकते।
आग की धमकी:
जिन लोगों ने हक़ को झुठलाया और क़ुरआन की हक़ीक़त को तस्लीम नहीं किया, उनके लिए सख्त धमकी है।
यह आग इन्तेहाई ख़ौफ़नाक होगी, जिसका ईंधन पत्थर और इंसान होंगे।
इन्कार का अंजाम:
क़ुरान की सच्चाई को न मानने वालों का अंजाम जहन्नुम है।
पत्थरों से मुराद वह बुत भी हो सकते हैं जिनकी यह लोग इबादत करते हैं।
सबक़:
यह आयत इंसानों को अल्लाह के सामने आजीजी और हक़ को तस्लीम करने का पैग़ाम देती है।
साथ ही, अल्लाह की कुदरत और क़ुरआन की मिसाली ख़सूसीयत को समझने की दावत देती है।
अल्लाह के नाफ़रमानों के लिए यह सख्त वॉर्निंग है कि वे अपना रास्ता सुधार लें।
आख़िरी बात:
इस आयत में क़ुरआन का इन्कार करने वालों को अल्लाह की सज़ा की हक़ीक़त से आगाह किया गया है।
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