सूरह फातिहा तर्जुमा व तफसीर, Surah Fatiha tarjuma va Tafseer, Kanjul Imam, Siratul Jinan Hindi

 सूरह फातिहा तर्जुमा व तफसीर, कंजूल ईमान, सिरातुल जिनान हिंदी

Surah Fatiha tarjuma va Tafseer, Kanjul Imam, Siratul Jinan Hindi

سُّورَةُ الفَاتِحَة

Surah fatiha tarjuma tafseer
Surah fatiha tarjuma tafseer 

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ

तर्जुमा कंजुल ईमान : अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला ।

तर्जुमा कंजुल इरफान : अल्लाह के नाम से शुरू जो निहायत मेहरबान रहमत वाला है ।

यह भी पढ़े-  Bismillah ki Fazilat 

ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ (1)

तर्जुमा कंजुल ईमान : सब खुबियां अल्लाह को जो मालिक सारे जहान वा viलों का । (1)

तर्जुमा कंजुल इरफान : सब तारीफे अल्लाह के लिए हैं जो तमाम जहान वालों का पालने वाला है ।(1)

ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ

सब तारीफे अल्लाह के लिए हैं ।

यानी हर तरह की हम्द और तारीफ का मुस्तहिक अल्लाह तआला है क्योंकि अल्लाह तआला कमाल की तमाम सिफात का जामेअ हैं ।

हम्द और शुक्र की तारीफ ।

हम्द का माएनी हैं किसी की इख्तियारी खूबियों की बिना पर उसकी तारीफ करना और शुक्र की तारीफ यह है कि किसी के एहसान के मुकाबले में जबान, दिल या आएजा से उसकी ताजीम करना और हम चूंकि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की हम्द आमतौर पर उसके एहसानात के पैसे नजर करते हैं इसलिए हमारी यह हम्द शुक्र भी होती हैं ।

अल्लाह तआला की हम्द व सना करने के फजाईल ।

इसमें अल्लाह तआला की हम्द व सना करने के बहुत फजाईल बयान किए गए हैं इनमें से तीन फजाईल दर्जे जेल हैं-

1. हज़रत अनस बिन मालिक رضی اللہ عنہ से रिवायत है, नबी अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया अल्लाह तआला बंदे की इस बात से खुश होता है कि वह कुछ खाए तो अल्लाह तआला की हम्द करें और कुछ पिए तो अल्लाह तआला की हम्द करें । (मुस्लिम शरीफ)

2. हजरत जाबिर बिन अब्दुल्लाह رضی اللہ عنہ से रिवायत है, हुजूर पुर नूर ﷺ ने इरशाद फरमाया सबसे अफजल जिक्र لَا إِلَٰهَ إِلَّا ٱللَّٰهُ है और सबसे अफजल दुआ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ है । (इब्ने माजा)

3. हज़रत अनस बिन मालिक رضی اللہ عنہ से रिवायत है, हुजूर अकदस ﷺ ने इरशाद फरमाया जब अल्लाह तआला अपने बंदे पर कोई नेअमत नाजिल फरमाता है और वह नेअमत मिलने पर ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ कहता है तो यह हम्द अल्लाह तआला के नजदीक उस दी गई नेअमत से ज्यादा अफजल हैं । (इब्ने माजा)

हम्द से मुतल्लिक शरई हुक्म ।

खुत्बे में हम्द वाजिब, खाने के बाद मुस्तहब, छींक आने के बाद सुन्नत, हराम काम के बाद हराम और बाज सूरतों में कुफ्र है ।
لِلَّهِ : अल्लाह के लिए

अल्लाह उस जाते आएला का अजमत वाला नाम है जो तमाम कमाल वाली सिफतों की जामेए हैं और बाएज मुफस्सरीन ने इस लफ्ज़ के माना भी बयान किए हैं जैसे उसका एक मानी है : इबादत का मुस्तहिक, दूसरा मानी है : वह जात जिसके मारिफत में अक्लें हैरान है । तीसरा मानी है : वह जात जिस की बारगाह में सुकून हासिल होता है, और चौथा मानी है : वो जात कि मुसीबत के वक्त जिसकी पनाह तलाश की जाए ।

رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ :

जो सारे जहान वालों का मालिक है ।

लफ्ज़ रब के कई मानी है : जैसे सैयद मालिक माबूद साबित मुसलीह और बतदरीज मरतबा ए कमाल तक पहुंचाने वाला । अल्लाह तआला के अलावा हर मौजूद चीज को आलम कहते हैं और इसमें तमाम मखलुकात दाखिल है ।

ٱلرَّحْمَـٰنِ ٱلرَّحِيمِ (2)

तर्जुमा कंजुल ईमान : बहुत मेहरबान रहमत वाला । (2)

तर्जुमा कंजुल इरफान : बहुत मेहरबान रहमत वाला । (2)

ٱلرَّحْمَـٰن : बहुत मेहरबान

रहमान और रहीम अल्लाह तआला के दो सिफाती नाम है रहमान का मानी है नेअमतें अता करने वाली वह जात जो बहुत ज्यादा रहमत फरमाए और रहीम का मानी है बहुत रहमत फरमाने वाला ।

याद रहे की हकीकी तौर पर नेअमत अता फरमाने वाली जात अल्लाह तआला की है कि वही तन्हा जात हैं जो अपनी रहमत का बदला तलब नहीं फरमाती, हर छोटी,बड़ी, जाहिरी, बातनी, जिस्मानी, रूहानी, दुनियावी और उखरवी नेअमत अल्लाह तआला ही अता फरमाता है और दुनिया में जिस शख्स तक जो नेअमत पहुंचती है वो अल्लाह तआला की रहमत ही से है क्योंकि किसी के दिल में रहम का जज्बा पैदा करना, रहम करने पर कुदरत देना, नेअमत को वजूद में लाना, दूसरे का इस नेअमत से फायदा उठाना और फायदा उठाने के लिए आएजा की सलामती अता करना, यह सब अल्लाह तआला की तरफ से ही है ।

अल्लाह तआला की वसीह रहमत देखकर गुनाहों पर बेबाक नहीं होना चाहिए ।

अबू अब्दुल्ला मुहम्मद बिन अहमद करतबी رحمة الله عليه फरमाते हैं अल्लाह तआला ने رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ के बाद अपने दो अवसाफ रहमान और रहीम बयान फरमाए, इसकी वजह यह है कि जब अल्लाह ताला ने फरमाया कि वो رَبِّ ٱلْعَـٰلَمِينَ है, तो उससे (सुनने और पढ़ने वाले के दिल में अल्लाह तआला की अजमत की वजह से उसका) खौफ पैदा हुआ, तो उसके साथ ही अल्लाह तआला के दो अवसाफ़ रहमान और रहीम जिक्र कर दिए गए जिनके जमन में (अल्लाह तआला की इताअत करने की) तरगीब है यूं तरहीब और तरगीब दोनों का बयान हो गया ताकि बंदा अल्लाह तआला की इताअत करने की तरफ अच्छी तरह रागीब हो और उसकी नाफरमानी करने से रूकने की खूब कोशिश करें ।

कुरआन मजीद में ओर मकामात पर अल्लाह तआला की रहमत और उसके अजाब दोनों को वाजेअ तौर पर एक साथ जिक्र किया गया है

चुनांचे अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है-

۞ نَبِّئْ عِبَادِىٓ أَنِّىٓ أَنَا ٱلْغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ ٤٩

وَأَنَّ عَذَابِى هُوَ ٱلْعَذَابُ ٱلْأَلِيمُ ٥٠

तर्जुमा कंजुल इरफान : मेरे बंदों को खबर दो कि बेशक मै ही बख्शने वाला मेहरबान हूं (49)
और बेशक मेरा ही अज़ाब दर्दनाक अजाब है ।(50)
सूरह हिज्र

और इरशाद फरमाता है -
غَافِرِ ٱلذَّنۢبِ وَقَابِلِ ٱلتَّوْبِ شَدِيدِ ٱلْعِقَابِ ذِى ٱلطَّوْلِ ۖ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ إِلَيْهِ ٱلْمَصِيرُ ٣
(سورة المؤمن)(سورة غافر)

तर्जुमा कंजुल इरफान : गुनाह बख्शने वाला और तौबा कबूल करने वाला, सख्त अजाब देने वाला, बड़े इनाम (अता फरमाने) वाला है । उसके सिवा कोई माबूद नहीं उसी की तरफ फिरना है । (3)

सूरह अल मोमिन(सूरह अल-गाफिर)

नीज हजरत अबू हुरैरा رضی اللہ عنہ से रिवायत हैं रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया अगर मोमिन जान लेता कि अल्लाह तआला के पास कितना अजाब हैं तो कोई भी उसकी जन्नत की उम्मीद ना रखता और अगर काफिर जान लेता कि अल्लाह तआला के पास कितनी रहमत हैं तो उसकी जन्नत से कोई ना उम्मीद ना होता ।

(मुस्लिम शरीफ)

लिहाजा हर मुसलमान को चाहिए कि वह उम्मीद और खौफ के दरमियान रहे और अल्लाह तआला की रहमत की वुसअत देखकर गुनाहों पर बेबाक ना हो और ना ही अल्लाह तआला के आजाब की शिद्दत देख कर उसकी रहमत से मायूस हो ।

किसी को रहमान और रहीम कहने के बारे में शरई हुक्म ।

अल्लाह तआला के अलावा किसी ओर को रहमान कहना जायज नहीं जबकि रहीम कहा जा सकता है जैसे कुरआन ए मजीद में अल्लाह तआला ने अपने हबीब ﷺ को भी रहीम फरमाया है चुनांचे इरशाद ए बारी तआला है-
لَقَدْ جَآءَكُمْ رَسُولٌۭ مِّنْ أَنفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُم بِٱلْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌۭ رَّحِيمٌۭ ١٢٨

तर्जुमा कंजुल इरफान : बेशक तुम्हारे पास तुम में से वो अजीम रसूल तशरीफ ले आए जिन पर तुम्हारा मशक्कत में पड़ना बहुत भारी गुजरता है, वो तुम्हारी भलाई के निहायत चाहने वाले, मुसलमानों पर बहुत मेहरबान, रहमत फरमाने वाले हैं । (सूरह तौबा 9:128)

مَـٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ (3)

तर्जुमा कंजुल ईमान : रोजे जजा का मालिक ।

तर्जुमा कंजुल इरफान : जजा के दिन का मालिक ।

مَـٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ
जजा के दिन का मालिक ।

जजा के दिन से मुराद कयामत का दिन है कि इस दिन नेक आमाल करने वाले मुसलमानों को सवाब मिलेगा और गुनाहगार और काफिरों को सजा मिलेगी जबकि मालिक उसे कहते हैं जो अपनी मिल्कियत में मौजूद चीजों में जिसे चाहे तसर्रुफ करें अल्लाह तआला अगरचे दुनिया व आखिरत दोनों का मालिक है लेकिन यहां कयामत के दिन को बतोरे खास इसलिए जिक्र किया ताकि इस दिन की अहमियत दिल में बैठे । निज दुनिया के मुकाबले में आखिरत में अल्लाह तआला के मालिक होने का जहुर ज्यादा होगा क्योंकि उस दिन किसी के पास जाहिरी सल्तनत भी ना होगी जो अल्लाह तआला ने दुनिया में लोगों को अता फरमाई थी इसलिए यहां खास तौर पर कयामत के दिन की मिल्कियत का जिक्र किया गया ।

Surah fatiha tarjuma tafseer
Surah fatiha tarjuma tafseer 

إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ (4)

तर्जुमा कंजुल ईमान : हम तुझी को पूजे और तुझी से मदद चाहे ।

तर्जुमा कंजुल इरफान : हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद चाहते हैं ।
اِیَّاكَ نَعْبُدُ وَ اِیَّاكَ نَسْتَعِیْنُ :
हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद चाहते हैं ।

इससे पहली आयात में बयान हुआ कि हर तरह की हम्द व सना का हकीकी मुस्तहिक अल्लाह तआला है जो कि सब जहानों का पालने वाला, बहुत मेहरबान और रहम फरमाने वाला है और इस आयत से बंदों को सिखाया जा रहा है कि अल्लाह तआला की बारगाह में अपनी बंदगी का इजहार यू करो कि अल्लाह عَزَّوَجَلَّ हम सिर्फ तेरी ही इबादत करते हैं क्योंकि इबादत का मुस्तहिक सिर्फ तू ही है और तेरे अलावा ओर कोई इस लायक ही नहीं कि उसकी इबादत की जा सके और हकीकी मदद करने वाला भी तू ही है । तेरी इजाजत व मर्जी के बगैर कोई किसी की किसी किस्म की जाहिरी, बातनी, जिस्मानी, रूहानी, छोटी, बड़ी कोई मदद नहीं कर सकता ।

इबादत और ताजिम में फर्क ।

इबादत का मफहुम बहुत वाजे हैं समझने के लिए इतना ही काफी है कि किसी को इबादत के लायक समझते हुए उसकी किसी किस्म की ताजिम करना इबादत कहलाता है और अगर इबादत के लायक ना समझे तो वह महज ताजिम होगी इबादत नहीं कहलाएगी जैसे नमाज में हाथ बांधकर खड़ा होना इबादत है लेकिन यही नमाज की तरह हाथ बांधकर खड़ा होना उस्ताद, पीर या मां-बाप के लिए हो तो महज ताजिम है इबादत नहीं और दोनों में फर्क वही हैं जो अभी बयान किया गया है ।

आयत اِیَّاكَ نَعْبُدُ से हासिल होने वाले निकात ।

आयत में जमा के सीगे है जैसे हम तेरी ही इबादत करते हैं इससे मालूम हुआ कि नमाज जमात के साथ अदा करनी चाहिए और दूसरों को भी इबादत करने में शरीक करने का फायदा यह है कि गुनाहगारों की इबादते अल्लाह तआला की बारगाह के महबूब और मकबूल बंदों की इबादतो के साथ जमा होकर कबूलियत का दर्जा पा लेती है । नीज़ यह भी मालूम हुआ कि अल्लाह तआला की बारगाह में अपनी हाजत अर्ज करने से पहले अपनी बंदगी का इजहार करना चाहिए ।

इमाम अब्दुल्ला बिन अहमद नस्फी رحمة الله عليه फरमाते हैं इबादत को मदद तलब करने से पहले जिक्र किया गया क्योंकि हाजत तलब करने से पहले अल्लाह तआला की बारगाह में वसीला पेश करना कबूलियत के ज्यादा करीब हैं।

अल्लाह तआला की बारगाह में वसीला पेश करने की बरकत ।

हर मुसलमान को चाहिए कि वह अल्लाह तआला की बारगाह में किसी का वसीला पेश करके अपनी हाजात के लिए दुआ किया करें ताकि उस वसीले के सदके दुआ जल्द मकबूल हो जाए और अल्लाह तआला की बारगाह में वसीला पेश करना कुरआन व हदीस से साबित है ।

चुनांचे वसीले के बारे में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है -
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَٱبْتَغُوٓا۟ إِلَيْهِ ٱلْوَسِيلَةَ وَجَـٰهِدُوا۟ فِى سَبِيلِهِۦ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ٣٥

(सूरह माइदा 35)
ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और उसकी तरफ वसीला ढूंढो और उसकी राह में जिहाद करो इस उम्मीद पर कि तुम फलाह पाओं।
(सूरह माइदा 35)

और सुनने इब्ने माजा में हैं कि एक नाबिना सहाबी बारगाह रिसालत ﷺ मैं हाजिर होकर दुआ के तालिब हुए तो आप ﷺ ने उन्हें इस तरह दुआ मांगने का हुक्म दिया-

’’اَللّٰہُمَّ اِنِّیْ اَسْاَلُکَ وَاَتَوَجَّہُ اِلَیْکَ بِمُحَمَّدٍ نَّبِیِّ الرَّحْمَۃِ یَا مُحَمَّدُ اِنِّیْ قَدْ تَوَجَّہْتُ بِکَ اِلٰی رَبِّیْ فِیْ حَاجَتِیْ ہَذِہٖ لِتُقْضٰی اَللّٰہُمَّ فَشَفِّعْہُ فِیَّ‘‘

ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ मैं तुझसे सवाल करता हूं और तेरी तरफ नबी ए रहमत हजरत मुहम्मद ﷺ के साथ मुतवजा होता हूं ए मुहम्मद ﷺ मैंने आप ﷺ के वसीले से अपने रब عَزَّوَجَلَّ की तरफ अपनी हाजत में तवज्जो की ताकि मेरी हाजत पूरी कर दी जाए ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ पस तू मेरे लिए हुजूर ﷺ कि सफाअत कबूल फरमा । (इब्ने माजा)

हदीस पाक में मज़कूर लफ्ज़ या मोहम्मद से मुतअल्लिक जरूरी वजाहत ।

आला हजरत इमाम अहमद रजा खान رحمة الله عليه फरमाते हैं ऑलमाऐ तसरीह फरमाते हैं हुजूर अकदस ﷺ को नाम लेकर निदा करनी हराम है और (यह बात) वाकई महले इंसाफ हैं जिसे इसका मालिक व मौला तबारक व तआला नाम लेकर ना पुकारे (तो) गुलाम की क्या मजाल कि (वो) राहें अदब से तजावूज करें, बल्कि इमाम जैनुद्दीन मरागी वगैराह मोहकीकिन ने फरमाया : अगर यह लफ्ज़ किसी दुआ में वारिद हो जो खुद नबी ﷺ ने तालीम फरमाई (हो) जैसे दुआएं

’’ یَا مُحَمَّدُ اِنِّیْ تَوَجَّہْتُ بِکَ اِلٰی رَبِّیْ‘‘۔

ताहम इसकी जगह या रसूल अल्लाह या नबी अल्लाह (कहना) चाहिए, हालांकि अल्फाजे दुआ में हत्तल वुसआ तगय्युर नहीं की जाती ।

यह मसला मुहमा (यानी अहम तरीन मसला) जिससे अक्सर अहले जमाना गाफिल है वाजिबुल हिफ्ज हैं ।
وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ :
और तुझ ही से मदद चाहते हैं ।

इस आयत में बयान किया गया कि मदद तलब करना ख्वाह वास्ते के साथ हो या वास्ते के बगैर हो हर तरह से अल्लाह तआला के साथ खास है और अल्लाह तआला की जात ही ऐसी हैं जिससे हकीकी तौर पर मदद तलब की जाए । आला हजरत इमाम अहमद रजा खान رحمة الله عليه फरमाते हैं हकीकी मदद तलब करने से मुराद यह है कि जिससे मदद तलब की जाए उसे बिल जात कादिर, मुस्तकिल मालिक और गनी बेनियाज़ जाना जाए कि वह अल्लाह तआला की अता के बगैर खुद अपनी जात से इस काम (यानी मदद करने) की कुदरत रखता है । अल्लाह तआला के अलावा किसी और के बारे में यह अकीदा रखना हर मुसलमान के नजदीक शिर्क हैं और कोई मुसलमान अल्लाह तआला के अलावा किसी ओर के बारे में ऐसा अकीदा नहीं रखता और अल्लाह तआला के मकबूल बंदों के बारे में मुसलमान यह अकीदा रखता है कि वो अल्लाह तआला की बारगाह तक पहुंचने के लिए वास्ता और हाजात पूरी होने का वसीला और जरिया है तो जिस तरह हकीकी वजूद के किसी के पैदा किए बगैर खुद अपनी जात से मौजूद होना अल्लाह तआला के साथ खास है इसके बावजूद किसी को मौजूद कहना उस वक्त तक शिर्क नहीं जब तक वही हकीकी वजूद मुराद ना लिया जाए । हकीकी इल्म कि किसी की अता के बगैर खुद अपनी जात से हो और हकीकी तालीम कि किसी चीज की मोहताजी के बगैर अजखुद किसी को सिखाना अल्लाह तआला के साथ खास है । इसके बावजूद दूसरे को आलिम कहना या उससे इल्म तलब करना उस वक्त तक शिर्क नहीं हो सकता जब तक वही असली मानी मकसूद ना हो तो इसी तरह किसी से मदद तलब करने का मामला है कि इसका हकीकी मानी अल्लाह तआला के साथ खास है । और वसीला व वास्ता के मानी में अल्लाह तआला के अलावा के लिए साबित है और हक़ है बल्कि यह मानी तो गैरे खुदा ही के लिए खास है क्योंकि अल्लाह तआला वसीला और वास्ता बनने से पाक है, उससे ऊपर कौन है कि यह उस तरफ वसीला होगा और उसके सिवा हकीकी हाजत रवा कौन हैं कि यह बीच में वास्ता बनेगा । बदमजहबियों की तरफ से होने वाला एक एतराज जिक्र करके इसके जवाब में फरमाते हैं यह नहीं हो सकता कि खुदा से तवस्सूल करके उसे किसी के यहां वसीला व जरिया बनाया जाए, इस वसीला बनने को, हम औलियाए किराम से मांगते हैं कि वो दरबार ए इलाही मैं हमारा वसीला, जरिया और कजाए हाजात का वास्ता हो जाए, उस बेवकूफी के सवाल का जवाब अल्लाह तआला ने इस आयते करीमा में दिया है-

وَمَآ أَرْسَلْنَا مِن رَّسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذْنِ ٱللَّهِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ إِذ ظَّلَمُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ جَآءُوكَ فَٱسْتَغْفَرُوا۟ ٱللَّهَ وَٱسْتَغْفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ لَوَجَدُوا۟ ٱللَّهَ تَوَّابًۭا رَّحِيمًۭا

(النساء: 64)

तर्जुमा कंजुल इरफान : और हमने कोई रसूल ना भेजा मगर इसलिये कि अल्लाह के हुक्म से उसकी इताएत की जाए और अगर जब वो अपनी जानों पर जुल्म कर बैठे तो ऐ हबीब ! तुम्हारी बारगाह में हाजिर हो जाते फिर अल्लाह से माफी मांगते और रसूल (भी) उनकी मगफिरत की दुआ फरमाते तो जरूर अल्लाह को बहुत तौबा कबूल करने वाला, मेहरबान पाते । (सूरह निशा 64)

क्या अल्लाह तआला अपने आप नहीं बख्श सकता था फिर क्यों यह फरमाया कि ए नबी ! तेरे पास हाजिर हो और तू अल्लाह से उनकी बख्शीश चाहे तो यह दौलत व नेअमत पाए यही हमारा मतलब है जो कुरआन की आयत साफ फरमा रही हैं ।

जेरे तफसीर आयते करीमा के बारे में मजीद तफसील जानने के लिए फतावा रजविया की 21 वीं जिल्द में मौजूद आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान رَحْمَۃُاللہِ تَعَالٰی عَلَیْہِ का रिसाला ’’بَرَکَاتُ الْاِمْدَادْ لِاَہْلِ الْاِسْتِمْدَادْ (मदद तलब करने वालों के लिए इमदाद की बरकतें) का मुताअला फरमाएं।

अल्लाह तआला की अता से बंदों का मदद करना अल्लाह तआला ही का मदद करना होता है ।

याद रहे कि अल्लाह तआला अपने बंदों को दूसरों की मदद करने का इख्तियार देता है और उस इख्तियार की बिना पर उन बंदों का मदद करना अल्लाह तआला ही का मदद करना होता है जैसे गजवा ए बद्र में फरिश्तों ने आकर सहाबा इकराम की मदद की लेकिन अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया-

وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ بِبَدْرٍۢ وَأَنتُمْ أَذِلَّةٌۭ ۖ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ 

(आले इमरान 123)

तर्जुमा कंजुल इरफान : और बेशक अल्लाह ने बद्र में तुम्हारी मदद की जब तुम बिल्कुल बेसर ओ सामान थे तो अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम शुक्र गुजार बन जाओ ।

(आले इमरान 123)

यहां फरिश्तों की मदद को अल्लाह तआला की मदद कहा गया इसकी वजह यह है कि फरिश्तों को मदद करने का इख्तियार अल्लाह तआला के देने से हैं तो हकीकतन यह अल्लाह तआला ही की मदद हुई यही मामला अंबियाऐ किराम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام और औलियाएं इजाम رَحْمَۃُاللہِ تَعَالٰی عَلَیْہِمْ का है कि वो अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की अता से मदद करते हैं और हकीकतन वो मदद अल्लाह तआला की होती हैं जैसे हजरत सुलेमान عليه السلام ने अपने वजीर हजरत आसिफ बिन बरख्या رضی اللہ عنہ से तख्त लाने का फरमाया और इन्होंने पलक झपकने में तख्त हाजिर कर दिया इस पर उन्होंने फरमाया-
هٰذَا مِنْ فَضْلِ رَبِّیْ‘‘

तर्जुमा कंजुल इरफान : यह मेरे रब के फज्ल से हैं । (सूरह नमल 40)

और ताजदार ए रिसालत ﷺ की सीरत ए मुबारका में मदद करने की तो इतनी मिसाले मौजूद है कि अगर सब जमा की जाए तो एक ज़खिम किताब मुरत्तब हो सकती हैं, इनमें से चंद मिसाले यह है -

1. सहीह बुखारी में हैं कि नबी करीम ﷺ ने थोड़े से खाने से पूरे लश्कर को)

2. आप ﷺ ने दूध के एक प्याले से सत्तर सहाबा को सेराब कर दिया ।

3. अंगुलियों से पानी के चश्मे जारी करके चौदह सौ (1400) या इससे भी जाईद अफराद को सेराब कर दिया ।

4. लुआबे दहन से बहुत से लोगों को शिफा अता फरमाई।

और यह तमाम मुद्दे चूंकि अल्लाह तआला की अता करदा ताकत से थे लिहाजा सब अल्लाह तआला की ही मददे हैं इस बारे में मजीद तफसील के लिए फतावा रजविया की तीसवीं (30) जिल्द में मौजूद आला हजरत इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह इमाम अहमद रजा खान علیہ رحمۃُ الرَّحمٰن के रिसाले

’’اَ’’اَ لْاَمْنُ وَالْعُلٰی لِنَاعِتِی الْمُصْطَفٰی بِدَافِعِ البلاء

( मुस्तफा करीम को دافع البلاء यानी बलाएं दूर करने वाला कहने वालों के लिए इनआमात)‘‘

का मुताएला फरमाए ।

اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ(5)

तर्जुमा कंजुल ईमान : हमको सीधा रास्ता चला ।

तर्जुमा कंजुल इरफान : हमें सीधे रास्ते पर चला ।
اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ 
हमें सीधे रास्ते पर चला ।

अल्लाह तआला की जात व सिफात की मारिफत के बाद उसकी इबादत और हकीकी मददगार होने का जिक्र किया गया और अब यहां से एक दुआ सिखाई जा रही है कि बंदा यूं अर्ज़ करें : ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तूने अपनी तौफीक से हमें सीधा रास्ता दिखा दिया अब हमारी इस रास्ते की तरफ हिदायत में इजाफा फरमा और हमें इस पर साबित कदम रख ।

सिराते मुस्तकीम का मानी ।

सिरात मुस्तकीम से मुराद का अकाईद का सीधा रास्ता है जिस पर तमाम अंबिया इकराम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام चले या इससे मुराद इस्लाम का सीधा रास्ता है जिस पर सहाबा इकराम رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُمْ बुजुर्गाने दीन और औलियाएं इजाम رَحْمَۃُاللہِ تَعَالٰی عَلَیْہِمْ चले जैसा कि अगली आयत में मौजूद भी हैं और यह रास्ता अहले सुन्नत का है कि आज तक औलियाएं किराम رَحْمَۃُاللہِ تَعَالٰی عَلَیْہِمْ सिर्फ इसी मसलक ए अहले सुन्नत में गुजरे हैं और अल्लाह तआला ने इन्हीं के रास्ते पर चलने और इन्हीं के साथ होने का फरमाया है ।

फरमाने बारी ताला है -
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَكُونُوا۟ مَعَ ٱلصَّـٰدِقِينَ 
(सूरह तौबा 119)

तर्जुमा कंजुल इरफान : ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और सच्चों के साथ हो जाओ ।

(सूरह तौबा 119)

और हजरत अनस رضی اللہ عنہ रिवायत है सैयदुल मुरसलीन ﷺ ने इरशाद फरमाया बेशक मेरी उम्मत कभी गुमराही पर जमा नहीं होगी और जब तुम (लोगों में) इख्तिलाफ देखो तो तुम पर लाजिम है कि सवादे आजम (यानी मुसलमानों के बड़े गिरोह) के साथ हो जाओ ।

(इब्ने माजा)

हजरत अब्दुल्लाह बिन उमरु رضی اللہ عنہ से रिवायत है नबी अकरम ﷺ ने इरशाद फरमाया बनी इसराइल बेहतर (72) फिरको में तक्सीम हो गए थे और मेरी उम्मत तियोत्तर (73) फिरको में तक्सीम हो जाएगी, इनमें से एक के अलावा सब जहन्नम में जाएंगे सहाबा इकराम رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُمْ ने अर्ज़ की या रसूल अल्लाह ﷺ निजात पाने वाला फिरका कौनसा है ? इरशाद फरमाया (वो उस तरीके पर होगा) जिस पर मैं और मेरे सहाबा हैं ।

(तिरमिजी शरीफ)

हिदायत हासिल करने के जराए।

याद रहे कि अल्लाह तआला ने हिदायत हासिल करने के बहुत से जराए अता फरमाए हैं, इनमें से चंद यह है-

1. इंसान की जाहिरी बातीनी सलाहियतें जिन्हें इस्तेमाल करके वो हिदायत हासिल कर सकता है ।

2. आसमानों, जमीनों में अल्लाह तआला की कुदरत व वहदानियत पर दलालत करने वाली निशानियां जिनमें गौरो फिक्र करके इंसान हिदायत पा सकता है।

3. अल्लाह तआला की नाजिल करदा किताबें इनमें से तौरात, इंजील और जबूर कुरआने पाक नाजिल होने से पहले लोगों के लिए हिदायत का बाइस थी और अब कुरआने मजीद लोगों के लिए हिदायत हासिल करने का जरिया है।

4. अल्लाह तआला के भेजे हुए खास बंदे अम्बिया इकराम और मुरसलीने इज़ाम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام, यह अपनी-अपनी कोमो के लिए हिदायत हासिल करने का जरिया थे और हमारे नबी हजरत मुहम्मद मुस्तफा صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ कयामत तक आने वाले तमाम लोगों के लिए हिदायत का जरिया है ।

आयत ’’ اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ‘‘ से मालूम होने वाले अहकाम।

इस आयत से तीन बातें मालूम होती हैं -

1. हर मुसलमान को अल्लाह तआला से सीधे रास्ते पर साबित कदमी की दुआ मांगनी चाहिए क्योंकि सीधा रास्ता मंजिले मकसूद तक पहुंचा देता है और टेढ़ा रास्ता मकसूद तक नहीं पहुंचाता।

अल्लाह तआला इरशाद फरमाता हैं कि अक्ल वाले इस तरह दुआ मांगते हैं :
رَبَّنَا لَا تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً ۚ إِنَّكَ أَنتَ ٱلْوَهَّابُ ٨

(आले इमरान 8)

 तर्जुमा कंजुल इरफान : ऐ हमारे रब ! तूने हमें हिदायत अता फरमाई हैं, इसके बाद हमारे दिलों को टेढ़ा ना कर और हमें अपने पास से रहमत अता फरमा, बेशक तू बड़ा अता फरमाने वाला है ।(आले इमरान 8)

और हजरत अनस رضی اللہ عنہ फरमाते हैं हुजूर पुरनूर صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ कसरत से यह दुआ फरमाया करते थे :
’’یَامُقَلِّبَ الْقُلُوْبْ ثَبِّتْ قَلْبِیْ عَلٰی دِیْنِکَ‘‘

ऐ दिलों को फेरने वाले ! मेरे दिल को अपने दीन पर साबित कदम रख । तो मैंने अर्ज की या रसूलल्लाह صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ हम आप पर और जो कुछ आप लाए हैं उस पर ईमान रखते हैं तो क्या आपको हमारे बारे में कोई खौफ है ? हुजूर अकदस صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फरमाया : हां ! बेशक दिल अल्लाह तआला की (शान के लायक उसकी) अंगुलियों में मैं से दो अंगुलियों के दरमियान हैं वो जिसे चाहता है उन्हें फेर देता है ।

(तिरमिजी शरीफ)

2. इबादत करने के बाद बंदे को दुआ में मशगुल होना चाहिए ।

3. सिर्फ अपने लिए दुआ नहीं मांगनी चाहिए बल्कि सब मुसलमानों के लिए दुआ मांगनी चाहिए कि इस तरह दुआ ज्यादा कबूल होती हैं ।
صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ (6-7)

तर्जुमा कंजुल ईमान : रास्ता उनका जिन पर तूने एहसान किया, ना उनका जिन पर गजब हुआ और ना बहके हुवों का ।

तर्जुमा कंजुल इरफान : उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने एहसान किया ना कि उनका रास्ता जिन पर गजब हुआ और ना बहके हुवों का ।
صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ :
उन लोगों का रास्ता जिन पर तूने एहसान किया ।

यह जुमला इससे पहली आयत की तफसीर है कि सिरातें मुस्तकीम से मुराद उन लोगों का रास्ता है जिन पर अल्लाह तआला ने एहसान व इनाम फरमाया और जिन लोगों पर अल्लाह तआला ने अपना फज्ल व एहसान फरमाया है उनके बारे में इरशाद फरमाता हैं-
’’وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ مَعَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلصِّدِّيقِينَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَٱلصَّـٰلِحِينَ ۚ وَحَسُنَ أُو۟لَـٰٓئِكَ رَفِيقًۭا ‘‘(सूरह निशा:79)

तर्जुमा कंजुल इरफान : और जो अल्लाह और रसूल की इताएत करें तो वो उन लोगों के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने फज्ल किया यानी अंबिया और सिद्दीकीन और शौहदा और सालिहीन और ये कितने अच्छे साथी हैं ।
(सूरह निशा:79)

आयत صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ से हासिल होने वाले मसाईल ।

इस आयत से दो बातें मालूम हुई -

1. जिन उमुर पर बुजुर्गाने दिन का अमल रहा हो वह सिरात मुस्तकीम में दाखिल हैं ।

2. इमाम फखरुद्दीन राजी رحمة الله عليه फरमाते हैं बाज मुफस्सरीन ने फरमाया कि ’’ اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ‘‘के बाद "صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ"को जिक्र करना इस बात की दलील है कि मुरीद हिदायत और مُکَاشَفَہ के मकामात तक उसी सूरत पहुंच सकता हैं जब वो किसी ऐसे (कामिल) पीर की पैरवी करे जो दुरुस्त रास्तें की तरफ उसकी रहनुमाई करें गलतियों और गुमराहियों की जगहों से उसे बचाए क्योंकि अक्सर लोगों पर नफ्स ग़ालिब हैं और उनकी अकेले हक को समझने सही और गलत में इम्तियाज करने से काशीर हैं तो एक ऐसे कामिल शख्स का होना जरूरी है जिसकी नाकिस शख्स पैरवी करें यहां तक कि इस कामिल शख्स की अक्ल के नूर से उस नाकिस शख्स की अक्ल भी मजबूत हो जाए तो इस सूरत में वो सआदतों के दरजात और कमालात की बुलंदियों तक पहुंच सकता है।
غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ :

ना कि उनका रास्ता जिन पर गजब हुआ और ना बहके हुवों का ।

जिन पर अल्लाह तआला का गजब हुआ उनसे मुराद यहूदी और बहके हुवों से मुराद ईसाई है जैसा कि सुनन तिर्मीजी जिल्द 4, सफहा 444, हदीस नंबर 2964 में हैं और इमाम फखरुद्दीन राजी رحمة الله عليه ने यह भी लिखा है कि जिन पर गजब हुआ उनसे मुराद बदअमल हैं और बहके हुवों से मुराद बदअकीदा लोग हैं ।

हर मुसलमान को चाहिए कि वो अकाईद, आमाल, सीरत, सूरत हर एतबार से यहूदियों, ईसाईयों और तमाम कुफ्फार से अलग रहे, ना इनके तौर तरीके अपनाएं और ना ही इनके रस्मो रिवाज और फैशन इख्तियार करें और इनकी दोस्तियों और सोहबतों से दूर रहते हुए अपने आप को कुरआन व सुन्नत के सांचे में ढालने में ही अपने लिए दोनों जहान की सआदत तसव्वुर करें ।

आयत "وَلَا ٱلضَّآلِّينَ" से मुतल्लिक शरई मसअला।

 बाज लोग "وَلَا ٱلضَّآلِّينَ" को ’’وَلَا الظَّآ لِّیْن‘‘ पढ़ते है, इनका ऐसा करना हराम है। आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान رحمة الله عليه फरमाते हैं : ض،ظ،ذ،ز सब मुतबाइना, मुतगाईरा (एक दूसरे से जुदा जुदा हुरूफ़) हैं, इनमें से किसी को दूसरे से तिलावते कुरआन में कसदन बदलना इसकी जगह उसे पढ़ना, नमाज में हो ख्वाह बैरूने नमाज, हरामे कतई व गुनाहे अजीम, اِفْتِراء عَلَی اللہ व तहरीफे किताबे करीम है ।

इस मसले के बारे में दलाईल के साथ तफसीली मालूमात हासिल करने के लिए फतावा रजविया की छठी जिल्द में मौजूद रसाइल का मुताएला फरमाए :

1. نِعْمَ الزَّادْ لِرَوْمِ الضَّادْ۔

(जाद (ض) की अदाएगी का बेहतरीन तरीका)

2. اِلْجَامُ الصَّادْ عَنْ سُنَنِ الضَّادْ

(ज़ाद (ض) की अदाएगी के गलत और सही तरीकों का बयान)

 {اٰمین} (आमीन)

इसका एक मानी है : ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ, तू कबूल फरमा।

दूसरा मानी है : ऐ अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तू ऐसा ही फरमा।

आमीन से मुतल्लिक शरई मसाइल।

1. यह कुरआन ए मजीद का कलिमा नहीं है ।

2. नमाज के अंदर और नमाज से बाहर जब भी सूरह फातिहा खत्म की जाए तो इसके बाद आमीन कहना सुन्नत हैं।

3. अहनाफ के नजदीक नमाज में आमीन बुलंद आवाज से नहीं बल्कि आहिस्ता कहीं जाएगी ।


सूरह फातिहा के तर्जुमे और तफसीर को अच्छी तरह से पढ़ने के लिए और सूरह फातिहा के बारे में जानने के लिए आप सब का शुक्रिया अदा करता हूँ | सूरह फातिहा की तिलावत को मामुल में लायें और अपनी ज़िन्दगी को इसके अनुसार ढाले |

इस ब्लॉग को लिखने में हमने कोशिश और मेहनत की है हमने पूरी एहतियात की है कि कही पर भी कोई गलती न हो फिर भी अगर आपको कुछ भी, कही भी कुछ गलती नजर आए तो हमें कमेंट के द्वारा जरूर बताए जिससे हम उस गलती में जल्द से जल्द सुधार कर सके |

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