Surah fatiha aur uske fazail। Surah fatiha । Quran tafseer।सूरह फातिहा का तआरूफ़

Surah fatiha aur uske fazail। Surah fatiha । Quran tafseer। सूरह फातिहा का तआरूफ़

मकाम ए नजूल ।

Surah fatiha aur uske fazail। Surah fatiha । Quran tafseer।सूरह फातिहा का तआरूफ़

सूरह फातिहा फजीलत
सूरह फातिहा

अक्सर ऑलमा के नजदीक सूरह फातिहा मक्का मुकर्रमा में नाजिल हुई है इमाम मुजाहिद رحمة الله عليه फरमाते हैं कि सूरह फातिहा मदीना मुनव्वरा में नाजिल हुई है और एक कॉल यह हैं सूरह फातिहा दो मर्तबा नाजिल हुई एक मर्तबा मक्का मुकर्रमा में और दूसरी मर्तबा मदीना मुनव्वरा में नाजिल हुई है ।

आयात कलिमात और हुरूफ की ताएदाद ।

इस सूरत में एक रुकू सात आयते 27 कलिमें और 140 हुरुफ है ।

सूरह फातिहा के असमा और इनकी वजह तस्मिया

इस सूरत के मूतअदद नाम है और नामों का ज्यादा होना इसकी फजीलत और शरफ की दलील हैं इसके मशहूर 15 नाम यह है

1. सूरह फातिहा - सूरह फातिहा से कुराने पाक की तिलावत शुरू की जाती है और इसी सूरत से कुराने पाक लिखने की इब्तिदा की जाती है इसलिए इसे फातिहतुल किताब यानी किताब की इब्तिदा करने वाली कहते हैं ।

2. इस सूरत की इब्तिदा अलहमदुलिल्ला से हुई इस मुनासिबत से इसे सुरतुल हम्द यानी वो सुरत जिसमें अल्लाह तआला की हम्द बयान की गई है, कहते हैं ।

3,4. सूरह फातिहा कुराने पाक की अस्ल है इस बिना पर इसे उम्मूल कुरान और उम्मूल किताब कहते हैं।

5. यह सूरत नमाज की हर रकअत में पढ़ी जाती हैं या यह सूरत दो मर्तबा नाजिल हुई है इस वजह से इससे अस्सउल मसानी यानी बार-बार पढ़ी जाने वाली या एक से जाईद मर्तबा नाजिल होने वाली सात आयते कहा जाता है ।

6,7,8 दीन के बुनियादी उमूर का जामेअ होने की वजह से सूरह फातिहा को सूरतुल कंज, सूरतुल वाफिया और सुरतुल काफिया कहते हैं।

9,10 शिफा का बाइस होने की वजह से इसे सूरतुल शिफा और सूरतुल शाफिया कहते हैं ।

11,12,13,14,15 दुआ पर मुस्तकबिल होने की वजह से इसे सूरतुददुआ, सूरतुत्तालिमिलमसएला, सुरतुस्सवाल, सुरतुलमुनाजात और सुरतुत्तफ्विद भी कहा जाता है ।

सूरह फातिहा
सूरह फातिहा surah fatiha 

सुरतूल फातिहा के फजाइल

अहादिस में इस सूरत के बहुत से फजाइल बयान किए गए हैं इनमें से चार फजाइल दर्जे जेल हैं-

1. हजरत अबू सईद बिन मुअल्ला फरमाते हैं मैं नमाज पढ़ रहा था तो मुझे नबी ए करीम ﷺ ने बुलाया लेकिन मैंने जवाब ना दिया (जब नमाज से फारिग होकर बारगाह ए रिसालत ﷺ मैं हाजिर हुआ तो) मैंने अर्ज की या रसूलूल्लाह ﷺ मैं नमाज पढ़ रहा था ताजदार ए रिसालत ﷺ ने इरशाद फरमाया क्या अल्लाह तआला ने यह नहीं फरमाया 'अल्लाह और उसके रसूल की बारगाह में हाजिर हो जाओ जब वह तुम्हें बुलाए' फिर इरशाद फरमाया क्या मैं तुम्हें तुम्हारे मस्जिद से निकलने से पहले क़ुरआने करीम की सबसे अजीम सूरत ना सिखाऊ ? फिर आप ﷺ ने मेरा हाथ पकड़ लिया जब हमने निकलने का इरादा किया तो मैंने अर्ज की या रसूलूल्लाह ﷺ आपने फरमाया था कि मैं जरूर तुम्हें कुरान मजीद की सबसे अजमत वाली सूरत सिखाऊंगा इरशाद फरमाया वह सूरत اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ (अलहमदुलिल्लाहीरब्बिल आलमीन) है यही सुबह मसानी और कुराने अज़ीम है जो मुझे अता फरमाए गई ।

2. हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बासرَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ फरमाते हैं एक फरिश्ता आसमान से नाजिल हुआ और उसने सैयद उल मुरसलीन ﷺ की बारगाह में सलाम पेश करके अर्ज की या रसूल अल्लाह ﷺ आपको उन दो नूरों की बशारत हो जो आपके अलावा और किसी नबी को अता नहीं किए गए और वो दो नूर यह है 1. सूरह फातिहा 2. सूरह बकरा ।

3. हजरत अबी बिन कअब رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ से रिवायत है हुजूर पुर नूर ﷺ ने इरशाद फरमाया अल्लाह तआला ने तौरात और इंजील में उम्मूल कुरान के मिसल कोई सूरत नाजिल नहीं फरमाए ।

4. हजरत अब्दुल मलिक बिन उमैर رَضِیَ اللہُ تَعَالٰی عَنْہُ से रिवायत है नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया सूरह फातिहा हर मर्ज के लिए शिफा है ।

सूरह फातिहा के मजामिन।

इस सूरत में यह मजामीन बयान किए गए हैं -

1. इस सूरत में अल्लाह तआला की हम्द ओ सना का बयान है

2. अल्लाह तआला के रब होने उसके रहमान और रहीम होने निज मखलूक के मरने के बाद दोबारा जिंदा किए जाने और कयामत के दिन इनके आमाल की जजा मिलने का जिक्र है ।

3. सिर्फ अल्लाह तआला के इबादत का मुस्तहिक होने और उसके हकीकी मददगार होने का तजकरा है ।

4. दुआ के आदाब का बयान और अल्लाह तआला से दिन ए हक और सिरात मुस्तकीम की तरफ हिदायत मिलने नेक लोगों के हाल से मवाफिकत और गुमराहों से इज्तिनाब की दुआ मांगने की तालीम है ।

यह चंद वो चीजें बयान की हैं जिनका सूरह फातिहा में तफसीली जिक्र है अलबत्ता इजमाली तौर पर इस सूरत में बेशुमार चीजों का बयान है अमीरुल मोमिनीन हजरत अली मुर्तजा رضی اللہ عنہ फरमाते हैं अगर मैं चाहूं तो सूरह फातिहा की तफसीर से सत्तर ऊंट भरवा दूं ।

आला हजरत इमाम अहमद रजा खान رحمة الله عليه हजरत अली मुर्तजा رضی اللہ عنہ का यह कौल नकल करने के बाद फरमाते हैं एक ऊंट कई (यानी कितने ही) मन बोज उठाता है और हर मन में कहीं (यानी कितने) हजार अजजा (होते हैं इनका हिसाब लगाया जाए तो यह) हिसाब से तकरीबन पच्चीस लाख जूज बनते हैं यह फकत सूरह फातिहा की तफसीर है ।

यह भी पढ़ें- Surah Fatiha Ki Tafseer 

सूरह फातिहा के मुतल्लिक शरई मसाईल।

1. नमाज में सूरह फातिहा पढ़ना वाजिब है इमाम और तन्हा नमाज पढ़ने वाला अपनी जबान से सूरह फातिहा पढेगा जबकि मुक्तदी इमाम के पीछे खामोश रहेगा और जहरी नमाज में इसकी किराअत भी सुनेगा और इसका यही अमल पढ़ने के अमल में हैं ।

अल्लाह तआला ने कुराने पाक में तिलावत के वक्त मुक्तदी को खामोश रहने और किराअत सुनने का हुक्म देते हुए इरशाद फरमाया
وَإِذَا قُرِئَ ٱلْقُرْءَانُ فَٱسْتَمِعُوا۟ لَهُۥ وَأَنصِتُوا۟ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ 
٢٠٤
तर्जमा ए कंजूल इरफान
और जब कुरान पढ़ा जाए तो उसे गौर से सुनो और खामोश रहो ताकि तुम पर रहम किया जाए ।
(सूरह अहराफ 204)

और हजरत अबू मूसा अशअरी رضی اللہ عنہ से रिवायत है हुजूर अकदस ﷺ ने इरशाद फरमाया जब इमाम किराअत करें तो तुम खामोश रहो । (इब्ने माजा)

जाबिर बिन अब्दुल्लाह رضی اللہ عنہ से रिवायत हैं नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया जिस शख्स का कोई इमाम हो तो इमाम का पढ़ना ही मुक्तदी का पढ़ना है ।(इब्ने माजा)

इनके अलावा और बहुत सी अहादिस में इमाम के पीछे मुक्तदी के खामोश रहने के बारे में बयान किया गया है ।

इमामे आजम رضی اللہ عنہ का मुनाजरा 

इमाम फखरुद्दीन राजी رضی اللہ عنہफरमाते हैं मदीना मुनव्वरा के चंद औलमा इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ के पास इस गरज से आए कि वह इमाम के पीछे मुक्तदी की किराअत करने के मामले में इनसे मुनाजरा करें इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ ने इनसे फरमाया सबसे मुनाजरा करना मेरे लिए मुमकिन नहीं आप ऐसा करें कि मुनाजरा का मुआमला उसके सुपुर्द कर दें जो आप सबसे ज्यादा इल्म वाला है ताकि मैं उसके साथ मुनाजरा करूं उन्होंने एक आलिम की तरफ इशारा किया तो इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ ने फरमाया क्या यह तुम सबसे ज्यादा इल्म वाला है इन्होंने जवाब दिया हां इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ ने फरमाया क्या मेरा इसके साथ मुनाजरा करना तुम सबके साथ मुनाजरा करने की तरह है उन्होंने कहा हां इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ ने फरमाया इसके खिलाफ जो दलील कायम होगी वो गोया कि तुम्हारे खिलाफ कायम होगी उन्होंने जवाब दिया हां इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ ने फरमाया अगर मैं इसके साथ मुनाजरा करूं और दलील में इस पर गालिब आ जाऊं तो वह दलील तुम पर भी लाजिम होगी उन्होंने कहा हां इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ ने दरयाफ्त किया वह दलील तुम पर कैसे लाजिम होगी उन्होंने जवाब दिया इसलिए कि हम इसे अपना इमाम बनाने पर राजी हैं इसकी बात हमारी बात होगी इमाम अबू हनीफा رضی اللہ عنہ ने फरमाया हम भी तो यही कहते हैं कि जब हमने एक शख्स को नमाज में अपना इमाम मान लिया उसका किराअत करना हमारा किराअत करना है और वह हमारी तरफ से नाईब हैं इमाम अबू हनीफा की यह बात सुनकर सब ने इकरार कर लिया (कि इमाम के पीछे मुक्तदी किराअत नहीं करेगा)

 2. नमाजे जनाजा में खास दुआ याद ना हो तो दुआ की नियत से सूरह फातिहा पढ़ना जायज है जबकि किराअत की नियत से पढ़ना जायज नहीं ।


इस सूरह के ताएरूफ को अच्छी तरह से पढ़ने के लिए और सूरह फातिहा के बारे में जानने के लिए आप सब का शुक्रिया अदा करता हूँ | सूरह फातिहा की तिलावत को मामुल में लायें और अपनी ज़िन्दगी को इसके अनुसार ढाले |

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